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शनि देव 🪐

शनि ग्रह वैदिक ज्योतिष में कर्म, अनुशासन, धैर्य और न्याय का कारक माना जाता है। इसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह कहा जाता है जो व्यक्ति को उसकी मेहनत और कर्मों के अनुसार फल प्रदान करता है। शनि को कर्म का दाता और दंड का कारक भी कहा जाता है। शनि जब किसी व्यक्ति की कुंडली के 12 घरों में स्थित होता है, तो इसका प्रभाव भिन्न-भिन्न होता है।

 शनि देव का सभी 12 भावों में प्रभाव⬇️


1. प्रथम भाव (लग्न)

प्रभाव:

लग्न भाव में शनि का होना व्यक्ति को गंभीर, अनुशासित और कर्तव्यपरायण बनाता है। ऐसे लोग जीवन में संघर्षों का सामना करते हैं लेकिन मेहनत से सफलता प्राप्त करते हैं।

सकारात्मक पक्ष: धैर्य, कड़ी मेहनत से सफलता।

नकारात्मक पक्ष: आत्मविश्वास की कमी, स्वास्थ्य समस्याएं।


2. द्वितीय भाव (धन भाव)

प्रभाव:

शनि धन भाव में व्यक्ति को धन संचय में धीमा बनाता है। ऐसे लोग परिवार के प्रति जिम्मेदार होते हैं और अपने धन को सोच-समझकर खर्च करते हैं।

सकारात्मक पक्ष: धन संचय, आर्थिक स्थिरता।

नकारात्मक पक्ष: पारिवारिक कलह, बोलने में कठोरता।


3. तृतीय भाव (पराक्रम भाव)

प्रभाव:

तृतीय भाव में शनि साहस और मेहनत का प्रतीक है। ऐसे लोग अपने प्रयासों से सफलता प्राप्त करते हैं और अपने भाई-बहनों के साथ संबंधों में गंभीरता रखते हैं।

सकारात्मक पक्ष: मेहनत से सफलता, साहस।

नकारात्मक पक्ष: धीमी प्रगति, रिश्तों में दूरी।


4. चतुर्थ भाव (सुख भाव)

प्रभाव:

चतुर्थ भाव में शनि मातृसुख और संपत्ति पर प्रभाव डालता है। ऐसे लोग अपने घर और परिवार के प्रति जिम्मेदार होते हैं लेकिन सुख पाने में विलंब होता है।

सकारात्मक पक्ष: स्थायी संपत्ति।

नकारात्मक पक्ष: मातृसुख की कमी, मानसिक तनाव।


5. पंचम भाव (संतान और बुद्धि भाव)

प्रभाव:

इस भाव में शनि रचनात्मकता और संतान पर प्रभाव डालता है। ऐसे लोग जीवन में गंभीरता से निर्णय लेते हैं।

सकारात्मक पक्ष: बुद्धिमता, धीमी लेकिन स्थिर प्रगति।

नकारात्मक पक्ष: संतान से जुड़ी समस्याएं, रचनात्मकता में कमी।


6. षष्ठ भाव (शत्रु और रोग भाव)

प्रभाव:

षष्ठ भाव में शनि का होना व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय दिलाता है और स्वास्थ्य के मामलों में सतर्क रहने की सलाह देता है।

सकारात्मक पक्ष: शत्रुओं पर विजय, कानूनी मामलों में सफलता।

नकारात्मक पक्ष: स्वास्थ्य समस्याएं, कार्य में देरी।


7. सप्तम भाव (विवाह और साझेदारी भाव)

प्रभाव:

सप्तम भाव में शनि व्यक्ति के वैवाहिक जीवन और साझेदारी को प्रभावित करता है। यह व्यक्ति को जिम्मेदार बनाता है लेकिन वैवाहिक जीवन में विलंब हो सकता है।

सकारात्मक पक्ष: स्थिर और जिम्मेदार संबंध।

नकारात्मक पक्ष: वैवाहिक जीवन में तनाव, देरी।


8. अष्टम भाव (मृत्यु और रहस्य भाव)

प्रभाव:

अष्टम भाव में शनि व्यक्ति को गूढ़ ज्ञान और आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है। यह स्थिति अचानक लाभ और हानि दोनों का संकेत देती है।

सकारात्मक पक्ष: गूढ़ ज्ञान, मानसिक गहराई।

नकारात्मक पक्ष: स्वास्थ्य समस्याएं, अप्रत्याशित घटनाएं।


9. नवम भाव (धर्म और भाग्य भाव)

प्रभाव:

नवम भाव में शनि व्यक्ति के धर्म, आध्यात्मिकता और भाग्य पर प्रभाव डालता है। ऐसे लोग धार्मिक होते हैं लेकिन भाग्य का फल देर से प्राप्त होता है।

सकारात्मक पक्ष: धर्म और कर्म में रुचि।

नकारात्मक पक्ष: भाग्य का विलंब से साथ देना, धार्मिक कट्टरता।


10. दशम भाव (कर्म और पेशा भाव)

प्रभाव:

दशम भाव में शनि व्यक्ति को करियर में सफलता और नेतृत्व क्षमता प्रदान करता है। यह स्थिति समाज में उच्च स्थान का संकेत देती है।

सकारात्मक पक्ष: मेहनत से उन्नति, नेतृत्व क्षमता।

नकारात्मक पक्ष: करियर में देरी, अत्यधिक जिम्मेदारी।


11. एकादश भाव (लाभ भाव)

प्रभाव:

इस भाव में शनि व्यक्ति को आर्थिक और सामाजिक लाभ दिलाता है। ऐसे लोग अपने लक्ष्यों को धीरे-धीरे लेकिन स्थायी रूप से प्राप्त करते हैं।

सकारात्मक पक्ष: आर्थिक लाभ, स्थायी मित्रता।

नकारात्मक पक्ष: अधिक लालच, धीमी प्रगति।


12. द्वादश भाव (व्यय और मोक्ष भाव)

प्रभाव:

द्वादश भाव में शनि व्यक्ति को आध्यात्मिकता और परोपकार की ओर ले जाता है। यह स्थिति विदेश यात्रा और खर्चों में वृद्धि का संकेत देती है।

सकारात्मक पक्ष: आध्यात्मिक प्रगति।

नकारात्मक पक्ष: आर्थिक हानि, अकेलापन।


निष्कर्ष:

शनि ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के कर्मों और ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। शनि हमेशा न्याय करता है और मेहनती लोगों को अंततः सफलता प्रदान करता है। किसी भी प्रकार के शुभ या अशुभ प्रभाव का सही विश्लेषण करने के लिए कुंडली का गहराई से अध्ययन करना आवश्यक है।


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